अगर प्रत्येक प्राथमिक स्वस्थ केन्द्र पर सरकार एक आयुष डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट, एक लैब टेक्नीशियन और दो नर्स को नियुक्त कर दे तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा बेहतर तरीके से चलाई जा सकती है। यह कहना है कि झाबुआ के आयुष चिकित्सक लोेकेश दवे का…
लोकेश दवे मध्य प्रदेश स्थित झाबुआ ज़िले में आरबीएसके कार्यक्रम में तैनात हैं। कार्यक्रम के तहत उन्हें आंगनबाड़ी व प्राइमरी स्कूल के बच्चों के स्वास्थ्य जांच करनी होती है। डॉ. लोकेश दवे के अनुसार मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधा नगण्य है। प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं पर ज्यादातर पीएचसी/ सीएचसी में डॉक्टर की तैनाती नहीं है। एम.बी.बी.एस डॉक्टर गावं नहीं जाना चाहते। झाबुआ जिले के ग्रामीण पूरी तरह झोला छाप चिकित्सकों के ऊपर आश्रित हैं। कई लोगों ने जानें भी गवाई हैं। डॉ. लोकेश कहते है कि देश भर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का लगभग यही हाल है। सरकार एम.बी.बी.एस डॉक्टरों की कमी का रोना रोती रहती है लेकिन इससे समाधान तो नहीं होगा न। सरकारों को सोचना होगा कि आखिर वे कबतक जुगाड़ पर अनुबंध के चिकित्सा कर्मिओं से काम चलायेंगे ? जग जाहिर है कि देश में लगभग अस्सी फीसदी स्वास्थ्य व्यवस्था को चलाने का ज़िम्मा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर है। एनआरएचएम की योज़नाओं में काम कर रहे आयुष चिकित्सक अपनी क्षमता से बढ़कर प्रदर्शन कर रहे हैं। डॉ. लोकेश स्वस्थ भारत अभियान के साथ आयुष चिकित्सकों के साथ होने वाले भेदभाव को साझा करते हुए कहते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की विभिन्न योज़नाओं में लगे आयुष चिकित्सकों को मिलने वाला वेतन देखा जाए तो एक चतुर्थ वर्गीय शासकीय कर्मचारी के समान ही है। इसके अलावा लगातार हो रहे मानसिक शोषण की वज़ह से कई आयुष चिकित्सक नौकरी छोड़ चुके हैं। कई-कई बार कॉन्ट्रैक्ट पर कार्यरत आयुष चिकित्सकों के साथ नियमित नौकरी वाले एमबीबीएस डॉक्टर ठीक से बर्ताव नहीं करते। एनआरएचएम स्वास्थ्य कर्मियों को हर साल अनुबंध की अवधी बढ़ाने को लेकर रिश्वत देनी पड़ती है। तमाम समस्याओं से जूझते हुए भी आयुष चिकित्सक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। इनके सेवा भाव में कभी कोई कमी नहीं आती।
समाधान की दिशा में बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि राज्य की बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवथा के लिए दोषी खुद सरकार ही है। अगर सरकारें मौजूदा संसाधनों का इस्तेमाल सही दिशा में करे और एनआरएचएम योज़ना में कार्यरत आयुष डॉक्टरों व कर्मचारिओं को सभी पीएचसी / सीएचसी और स्वास्थ्य उपकेंद्रों में नियमित रूप से तैनात कर दे तो सरकार और कर्मचारियों दोनों की ही समस्याओं का हल संभव है। सरकारी योज़नाओं को बड़ी ही आसानी से इम्प्लीमेंट किया जा सकता है। सरकार के पास न तो धन की समस्या है और ना ही मैन पावर की। बस मंशा होनी चाहिए और एक ईमानदार पहल।
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2 comments
बिलकुल सही बात है,
पुरे भारत को स्वस्थ करने के लिए भारत के मौजुदाआयुष चिकित्सको का पुरे अधिकार के साथ कानुनीरुप से आधुनिक चिकित्सा व्यवसाय से संकलित कर देना चाहिये.
जिस से तबीबो की कमी भी पुरी हो जाये और ग्राम्य भारत तक स्वास्थ्य सेवा सुखर्प पहोंच शके.
सरकार को चाहिए कि वह आयुष की सभी चिकित्सा पद्धति की बढावा दे और उसका प्रचार करे। हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी यूनानी आयुर्वेद सिद्ध योग चिकित्सा प्रणाली की जानकारी का आभाव है। हम सब को मिलकर आयुष ले लिए जागरूक करना चाहिए और उसका महत्त्व समझाना चाहिए।