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गरीबी उन्मूलन की दिशा में जनऔषधि एक क्रांतिकारी कदम हैः मनसुख भाई मांडविया, रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री, भारत सरकार

Janaushadhi is a revolutionary step towards poverty eradication: Mansukh Bhai Mandoviya, Minister of State for Chemicals and Fertilizers, Government of India

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना को लेकर रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख भाई मांडविया इन दिनों बहुत सक्रीय हैं। इस योजना को सफल बनाने के लिए वे दिन-रात लगे हुए हैं। जहां पर भी जनऔषधि की चर्चा होती है वहां पर मनसुख भाई मांडविया पहुंचने का हर-संभव प्रयास करते हैं। 4200 से ज्यादा जनऔषधि केन्द्र खुल चुके हैं। सितंबर, 2018 को गुरुग्राम के बिलासपुर स्थित केंद्रीय भंडारण केन्द्र का उद्घाटन करने वे पहुंचे मनसुख भाई मांडविया से स्वस्थ भारत डॉट इन के संपादक आशुतोष कुमार सिंह ने बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंशः
सबसे पहले तो डिजिटलाइज्ड केन्द्रीय भंडारण केन्द्र के लिए बधाई देता हूं। आप अपने संबोधन में डायरेक्ट सफ्लाइ चेन की बात कर रहे थे। बात यहीं से शुरू करते हैं। इससे जनऔषधि संचालकों के साथ-साथ बाजार को क्या फायदा होने जा रहा है?
डायरेक्ट सप्लाई चेन डिजीटल वर्ल्ड के ऊपर आधारित एक नया कॉसेप्ट है। हमने अपने सभी जनऔषधि केन्द्रों को एक सॉफ्टवेयर से जोड़ने का काम किया है, यह सॉफ्टवेयर सेंट्रल वेयर हाउस से जुड़ा हुआ है। इस सॉफ्टवेयर केन्द्र  संचालक अपनी दवाइयों के स्टॉक, शार्टेज एवं उपलब्धता के बारे में डाटा का निरीक्षण कर सकेंगे और अपनी मांग के अनुरूप ऑनलाइन ऑर्डर दे सकेंगे। हमारा प्रयास है कि ऑर्डर मिलने के 72 घंटे के अंदर केन्द्रीय भंडारण केन्द्र से उन्हें दवा आपूर्ति करा दी जाए। उससे दो फायदा होगा, एक सीएनएफ, ड्रिस्ट्रीव्यूटर जिनमें 22-23 फीसद कमीशन जाता था वह कम रह जाएगा। और दूसरा ट्रांसपोर्टेशन खर्च सिर्फ 7 फीसद कमीशन देने से से निकल जाएगा। इस तरह हम जनता को और सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने की स्थिति में रहेंगे।

आज के दौर में जिस तरह डिजीटल मार्केटिंग कंपनिया लोगों को सीधे उत्पाद पहुंचा रही है, वैसे ही जनऔषधि की भी आम मरीजों तक पहुंचने की कोई योजना है क्या?
मरीज के पास डायरेक्ट मेडिसिन पहुंचाना, यह हमारा अभी काम नहीं है। अभी हम अपने जनऔषधि केन्द्रों पर मांग के अनुरूप दवा की उपलब्धता को सुनिश्चित कराने का काम कर रहे हैं।

Citizens save around Rs. 600 crores till date during FY2018-19 under PMBJP: Shri Mansukh Mandaviya
file photo

तमाम तरह के प्रचार-प्रसार के बावजूद अभी भी लोगों के मन में जेनरिक एवं ब्रांडेड दवाइयों के लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस पर आपकी क्या राय है?
जेनरिक  को लेकर फैले भ्रम को लेकर मैंने पार्लियामेंट में कहा था कि पानी को जब हम ग्लास में रखते हैं तो वह सिर्फ पानी ही रहता है लेकिन जैसे ही हम उसे किसी ए, बी या सी ब्रांड की कंपनी के बोतल में बंद करते हैं तो उसकी कीमत क्रमशः कंपनी की ब्रांड वैल्यू के हिसाब से बढ़ जाती है। ग्लास के पानी की कीमत संभव है 2 रुपये हो लेकिन इसी पानी को जब आप एक ब्रांड के नाम पर बोतल में बंद कर देते हैं तो इसकी कीमत क्रमशः 15 ,20 एवं 30 रुपये तक चली जाती है। यानी ये ब्रांड हैं और जेनरिक एक सॉल्ट का नाम है। इस दिशा में धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ी है। आज बीपीपीआई द्वारा इस दिशा में काम करने से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि जेनरिक दवाइयों का बाजार 2 फीसद से बढ़कर 7 फीसद तक पहुंच गया है। आज ही अंग्रेजी के एक अखबार में खबर थी कि अब मंल्टीनेशनल कंपनियां भी जेनरिक दवाइयां बनाने के लिए तैयार हो रही हैं। इससे देश में दवाइयों का जो बाजार 1 से सवा लाख करोड़ रूपये का है वह आने वाले समय में 50 फीसद कम हो सकता है।
संसद में आपने कहा था कि जनऔषधि केन्द्र जब से सक्रीय हुए हैं, गरीबों को बहुत फायदा हुआ है। इस संदर्भ में आपने कुछ आंकड़े भी गिनाए था। किन आंकड़ों की बात आप कर रहे थे?
दवाइयों का खर्च नहीं वहन करने की वजह से हर साल 6 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। तकरीबन 26 लाख परिवार ऐसे हैं थे जो गरीबी रेखा से नीचे चले जा रहे थे। जनऔषधि की वजह से वे गरीबी रेखा के नीचे नहीं जाएंगे और वे अपने परिवार की देखभाल ठीक से कर पाएंगे।
यानी आप यह कह रहे हैं कि गरीबी उन्मूलन की दिशा में जनऔषधि एक क्रांतिकारी कदम है?
गरीबी उन्मूलन में इसकी अहम भूमिका तो है ही साथ ही आयुष्मान भारत योजना को प्रोमोट करने में भी इसकी भूमिका है।
Benefit of Ayushman Bharat
आयुष्मान भारत को जनऔषधि से क्या भायदा होने जा रहा है?
इस योजना के अंतर्गत मेडिसिन पर खर्च सरकार एवं बीमा कंपनी को करना है तो ऐसे में बीमा कंपनी भी अस्पतालों को अप्रोच करेंगी कि वे  जनऔषधि दवा का उपयोग बढ़ाएं ताकि उनकी कॉस्ट प्रबंधन हो सके। जेनरिक और ब्रांडेड में कोई अंतर नहीं है। दोनों ही गुणवत्तायुक्त दवाइयां होती है। हमलोग उन्हीं कंपनियों से जेनरिक दवा बनवा रहे हैं जो डब्ल्यूएचओ एवं जीएमपी के मानको को पूरा करती हैं। दूसरी तरफ ब्रांडेड दवाइयां भी इन्हीं मानको के अनुसार बनाई जाती है। ऐसे मे जहां कॉस्ट इफेक्टीनेस की बात आती है वहां पर जनऔषधि की दवाइयां अग्रणी बन रही हैं।

एक सवाल जनऔषधि से हटकर। आपके मंत्रालय के अंतर्गत ही नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्रासिंग ऑथोरिटी (एनपीपीए) है। 2013 में ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर आया है। इस ऑर्डर में दवा मूल्य नियंत्रण के लिए बाजार आधारित फार्मूला को अपनाया गया। 2012 में संसद मे यह कहा गया था कि दवा कंपनियां 1100 फीसद तक मुनाफा कमा रही हैं। ऐसे में इस मुनाफे को मिनिमाइज किए बगैर बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति को लागू कर देने से बाजार में 1100 फीसद मुनाफे की लिक्विडिटी अभी भी बनी हुई है। इस लिक्वीडिटी को कम करने की दिशा में सरकार क्या सोच रही है?
किसी दवा की 1 फीसद शेयर वाली कंपनियों द्वारा तय कीमत के औसत को एनपीपीए राष्ट्रीय दवा मूल्य मानती है। एनपीपीए द्वरा तय मूल्य से ज्यादा कोई एमआरपी तय नहीं कर सकता है, सिर्फ इतना करने से देश को 11 हजार करोड़ रुपये का फायदा हुआ है।

जी, मैं भी इसी संदर्भ में अपना प्रश्न रख रहा हूं। जनऔषधि ने 100 रुपये बाजार मूल्य की दवा को 10 रुपये में बेचकर एवं खुद को संस्टेन करके यह साबित कर दिया है कि अगर बाजार से 1100 फीसद मुनाफे की लिक्विडिटी और कम हो जाए तो लोगों को और ज्यादा फायदा हो सकेगा। इसके लिए रसायन मंत्रालय ने क्या किया है?
देखिए, क्या है न! जो ब्रांडेड मेडिसिन है न! ब्रांडेड कंपनियों को अपनी मार्केटिंग के लिए, प्रोमोशन के लिए बहुत खर्च करना पड़ता है जिससे उनका प्रोडक्शन खर्च बढ़ जाता है। जेनरिक मेडिसिन में ऐसा विषय नहीं है। हां, मैं मानता हूं लिक्विडीटी है, लिक्विडिटी को कंट्रोल करने के लिए हमने एक्शन लिया है। जब हम प्रोडक्शन बेस के आधार पर प्राइस कंट्रोल करने की बात करते हैं तो इससे इंडस्ट्री एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार और फार्मा के सेक्टर में आज हम 6 बड़े उत्पादकों में खड़े हैं, उसे भी देखना हैं देश की जनता को सस्ती दवा मिले यह भी देखना है। दोनों को बैलेंस करने के लिए हम जेनरिक मेडिसिन की राह पर चल रहे हैं।
    

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