स्वस्थ भारत मीडिया
नीचे की कहानी / BOTTOM STORY

तालाबों की सफाई की याद बार-बार दिलाते रहे बापू

आज मोहनदास करमचन्द गांधी की पुण्य तिथि है। स्वस्थ भारत अभियान उनको नमन करता है। राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को याद करते हुए इस सप्ताह हम गांधी के स्वास्थ्य व स्वच्छता संबंधित विचार को आप पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। इसकी पहली कड़ी में हम यह लेख प्रस्तुत कर रहे हैं। संपादक
Mohandas-Gandhi
महात्मा गांधी ग्राम स्वराज्य में स्वचछता के मसले पर कहते हैं, ‘हमने राष्ट्रीय या सामाजिक सफाई को  न तो जरूरी गुण माना और न उसका विकास ही किया। यूं रिवाज के कारण हम अपने ढंग से नहा भर लेते हैं, परन्तु जिस नदी, तालाब या कुएं के किनारे हम श्राद्ध या वैसी ही दूसरी कोई धार्मिक क्रिया करते हैं और जिन जलाशयों में पवित्र होने के विचार से हम नहाते हैं, उनके पानी को बिगाड़ने या गंदा करने में हमें कोई हिचक नहीं होती। हमारी इस कमजोरी को मैं एक बड़ा दुर्गण मानता हूं। इस दुर्गुण का ही यह नतीजा है कि हमारे गांवों की और हमारी पवित्र नदियों के पवित्र तटों की लज्जानजक दुर्दशा और गंदगी से पैदा होने वाली बीमारियां हमें भोगनी पड़ती हैं।’ (व्यास, 1963)
ग्रामीण भारत को साफ-सफाई का पाठ पढ़ाते हुए गांधी कहते हैं, ‘गांवों में जहां-जहां कूड़े-कर्कट तथा गोबर के ढेर हों वहां-वहां से उनको हटाया जाय और कुओं तथा तालाबों की सफाई की जाय। यदि कांग्रेसी कार्यकर्ता नौकर रखे हुए है तो भी भंगियों की तरह खुद सफाई का कार्य शुरू कर दें और साथ ही गांव वालों को यह भी बतलाते रहे उनसे सफाई कार्य में शामिल होने की आशा रखी जाती है ताकि आगे चलकर अंत में सारा काम गांव वाले स्वयं करने लग जायें, तो यह निश्चित है कि आगे या पीछे गांव वाले इस कार्य में अवश्य सहयोग देने लगेंगे।’ (व्यास, 1963)
गांधी आगे कहते हैं, ‘गांवो के तालाब से स्त्री और पुरूष सब स्नान करने, कपड़े धोने, पानी पीने तथा भोजन बनाने का काम लिया करते हैं। बहुत से गांवों के तालाब पशुओं के काम भी आते हैं। बहुधा उनमें भैंसे बैठी हुई पाई जाती हैं। आश्चर्य तो यह है कि तालाबों का इतना पापपूर्ण दुरुपयोग होते रहने पर भी महामारियों से गांवों का नाश अब तक क्यों नहीं हो पाया है? यह एक सार्वत्रिक डॉक्टरी प्रमाण है कि पानी की सफाई के संबंध में गांव वालों की उपेक्षा-वृत्ति ही उनकी बहुत-सी बीमारियों का कारण है। ( व्यास, 1963, पृ.180)
संदर्भ-(व्यास, हरिप्रसाद 1963: ग्राम स्वराज्य-महात्मा गांधी, नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद, पृ.179-83,)
नोटः यदि आप भी गांधी के स्वास्थ्य व स्वच्छता दर्शन पर कुछ लिखना चाहते हैं तो निःसंकोच लिख भेजिए। ईमेल-forhealthyindia@gmail.com

Related posts

स्वास्थ्य पत्रकारिता का ध्वजवाहक है ‘स्वस्थ भारत डॉट इन’

Ashutosh Kumar Singh

स्वास्थ्य पहली बार बना चुनावी मुद्दा

कोविड-19 के इन योद्धाओं को प्रणाम

Ashutosh Kumar Singh

Leave a Comment