स्वस्थ भारत मीडिया
नीचे की कहानी / BOTTOM STORY

एमआर को ब्राइब एजेंट न समझें

बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में एमआर की एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।  इस प्रतिबंध का एमआर संगठन विरोध कर रहे हैं। उनका भी अपना तर्क है। स्वस्थ भारत डॉट इन सभी पक्षों को अपनी बात रखने बराबर मौका देता है। इसी कड़ी में बिहार-झारखंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स यूनियन (बीएसएसआर) के उपाध्यक्ष अजय कुमार का पक्ष रख रहे हैं।– संपादक
 
अजय कुमार
दवाओं को लेकर सरकार और जन मानस की चिंता वाजिब है।लोगों को सस्ते दर पर दवाइयां उपलब्ध हों यह अति आवश्यक है।पर पिछले एक दशक से दवा कंपनियों की एक खास लॉबी द्वारा इस बारे में संशय और भ्रम फैलाया जा रहा है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयों पर विमर्श करते हुए जन मानस में यह बात फैलाई जा रही है कि जेनेरिक दवाइयां सस्ती और ब्रांडेड दवाइयां महंगी होती है। यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि ब्रांडेड दवाइयों के प्रचलन के पीछे कम्पनियों व डॉक्टर की मिलीभगत से ग्राहकों को लूटा जा रहा है।
इस सारे खेल में सबसे निचले स्तर पर कार्य कर रहे मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें Bribe Agent और खलनायक बताने की कोशिश हो रही है तथा उन्हें अस्पतालों-मेडिकल कॉलेजों व बड़े नर्सिंग होम्स में काम करने से रोका जा रहा है। कई राज्यों ने इस बाबत अस्पतालों व मेडिकल कॉलेजों को बजाप्ता निर्देश भी जारी किये हैं जो कि सरासर गलत और गैर कानूनी है। सरकार के Drugs & Cosmetic Act के तहत क़ानूनी तौर पर एक मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव ही किसी दवा के प्रमोशन के लिए अधिकृत है तो उस नाते एक मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव किसी भी क्लिनिक, डिस्पेंसरी, नर्सिंग होम, अस्पताल या मेडिकल कॉलेजों में अपनी कम्पनी की दवाओं के प्रमोशन के लिए विजिट कर सकता है, सो सरकार द्वारा MR के प्रवेश निषेध का आदेश पूरी तरह गैर कानूनी और तानाशाही है।
एक तरफ जहां भारत का युवा बेरोजगारी से जूझ रहा है और सरकारें नए रोजगार देने में विफल रही हैं वैसे में जेनेरिक दवाओं के सस्ते होने व डॉक्टर तथा कंपनियों को भ्रष्ट बताकर न सिर्फ जनता को इनके खिलाफ उकसाया जा रहा है बल्कि लाखों युवाओं को बेरोजगार बनाने की साजिश हो रही है।
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि एक तो आमतौर पर जेनेरिक दवाओं के सस्ती होने की बात ही झूठी व तथ्य से पड़े हैं। ग्राहकों के लिए तो बाजार में बेचीं जा रही जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से डेढ़ गुना अधिक दामों पर बेचीं जा रही है उस पर से गुणवत्ता भी शक के दायरे में है। दूसरे ब्रांडेड दवाओं के महंगे होने के myth को लेकर मैं सहमत हूं कि चूँकि इसके प्रमोशन के लिए एक बड़ा और सुनियोजित विपणन नेटवर्क काम करता है तो जाहिर तौर पर इस खर्चे को ग्राहकों को ही वहन करना पड़ता है फिर भी दवा कम्पनी के मालिक लागत मूल्य पर कई गुना मुनाफा कमाते हैं। जेनेरिक दवाओं में इसी विपणन के खर्चे को बिचौलियों के बीच बांट दिया जाता है तो फिर ग्राहकों को कम कीमत का लाभ मिलने से रहा।
मेरे 25 साल के अनुभव यह कहते हैं कि सरकार यदि चाहे तो ब्रांडेड दवाओं को भी मौजूदा व्यवस्था के तहत ही मरीजों को सस्ते व उचित दर पर उपलब्ध कराया जा सकता है वो है “अधिकतम खुदरा मूल्य की सीमा निर्धारित कर”। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की सरकार ने जिन दवाओं के ऊपर प्राइस कंट्रोल आर्डर लगा रखा है वैसी दवाएं काफी सस्ते में मरीजों को उपलब्ध है।
दरअसल इस पुरे खेल के कई पहलू हैं जिसमें सबसे ऊपर बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों का दबाव है वो भारतीय दवा बाजार पर पूरी तरह एकाधिकार चाहती हैं उन्हें मरीजों के हित से कुछ लेना देना नहीं है। उनका मकसद जेनेरिक दवाओं के बहाने भारतीय दवा उद्योग के बढ़ते वैश्विक वर्चस्व को खत्म कर भारत के स्वदेशी दवा उद्योग को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर लेने या लील जाने का है।
जहां एक और सरकार पकौड़े तलने को रोजगार बताते हुए देश की बेरोजगार युवा पीढ़ी का माखौल उड़ा रही है वहीं दूसरी ओर जेनेरिक मेडिसिन को बढ़ावा देने के नाम पर लाखों मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स की नौकरी खतरे में डाल रही है। सरकार के इस तुगलकी फरमान का हम विरोध करते हुए हम सरकार से मांग करते हैं कि ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं की एक नीति बनाई जाए और लागत मूल्य व अधिकतम खुदरा मूल्य के बीच के मार्जिन को न्याय संगत व peoples friendly बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाये जाएं।
 
नोटः  दवाइयों के अधिकतम मूल्य को निर्धारित करने के  सुझाव  से स्वस्थ भारत भी सहमत है। इसी  दिशा में स्वस्थ भारत अभियान कंट्रोल मेडिसिन मैक्सिमम रिटेल प्राइस कैंपेन पिछले 6 वर्षों से चला रहा है।

Related posts

COVAXIN की 5 करोड़ खुराक अगले साल हो जाएंगी बेकार

admin

TIME TO RE-CONNECT – Dr.Vijay Surase

Vinay Kumar Bharti

कोविड-19 और रोजी रोटी की समस्या

Ashutosh Kumar Singh

Leave a Comment