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  योग : भारतीयता की अंतराष्ट्रीय पहचान

गलतफहमी की गुंजाइश नहीं सच्ची मुहब्बत में
अगर किरदार हल्का हो …. कहानी डूब जाती है॥….. वसीम बरेलवी
भारत में कहा जाता है कि वही होता है जो ईश्वर की इच्छा होती है। भविष्य मे होने वाली घटनाओं के लिये नियति ने किरदार भी पहले से तय किये होते हैं। इस मृत्युलोक मे ईश्वर द्वारा भेजे गए किरदारों को यहाँ सिर्फ अपना रोल निभाना होता है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज से सिर्फ 25 साल पहले यदि किसी से कहा जाता कि पिछले हजारों सालों से भारतीय जीवन शैली का आधार रहे योग-विज्ञान को अन्तराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी तो शायद कहने वाले को भी तवज्जो नहीं मिलती। योग को तो सवाल ही नहीं था ?ramdev
इसके बाद समय ने करवट ली। स्वामी रामदेव के रूप मे एक योगी-पुरुष ने भारत के आम जनमानस मे इस बात का विश्वास पैदा कर दिया कि सिर्फ योग के द्वारा भी बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज़ किया जा सकता है। सांस को लेने और छोड़ने की प्रक्रिया भी इतनी प्रभावी हो सकती है कि इसके द्वारा ही शरीर को स्वस्थ रखने का मार्ग निकल सकता है।धीरे धीरे स्वामी रामदेव के प्रयास रंग लाने लगे और अन्तराष्ट्रटीय स्तर पर भी लोगों का विश्वास योग पर बढ्ने लगा। हालांकि, कुछ जागरूक लोगों का रुझान पहले से योग की तरफ था।
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद भारत की जनता ने एक प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री चुना। स्वामी रामदेव का समर्थन तो पहले से ही नरेंद्र मोदी के साथ था। नियति के द्वारा रचित इस खेल मे अब किरदार निभाने की बारी नरेंद्र मोदी की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ मे उनका हिन्दी मे दिया गया भाषण और योग विज्ञान की पैरवी का सकारात्मक असर भी बहुत कम समय मे ही देखने को मिल गया जब 11 दिसंबर को युनाइटेड नेशन मे दुनिया के 193 देशों में से 177 देशों ने प्रस्ताव पास कर विश्व योग दिवस की घोषणा कर दी। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम के कुटेसा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की है। सदियों से भारत की जीवन शैली के आधार योग को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने जा रही है। सैम कुटेसा ने कहा कि “170 से अधिक देशों ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव का समर्थन किया है जिससे पता चलता है कि योग के अदृश्य और दृश्य लाभ विश्व के लोगों को कितना आकर्षित करते हैंसदियों से सभी वर्गों के लोग शरीर और मन को एकाकार करने में सहायक योग का अभ्यास करते आए हैंयोग विचारों और कर्म को सामंजस्यपूर्ण ढंग से एकाकार करता है और स्वास्थ्य को ठीक रखता है” संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बधाई देते हुए कहा कि उनकी पहल से ही 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है।
नरेंद्र मोदी सरकार की इस उपलब्धि से भारतीयता गौरवान्वित हुयी है। इसके साथ ही हमें पिछली सरकारों के उस योगदान की भी सराहना करनी होगी जिसके आधार पर वर्तमान उपलब्धि की पृष्ठभूमि तैयार हुई थी। भारत में 2011 में हुए एक योग सम्मेलन में 21 जून को विश्व योग दिवस के तौर पर घोषित किया गया था। चूंकि 21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है और इस दिन सूरज, रोशनी और प्रकृति का धरती से विशेष संबंध होता है इसलिए इस दिन को चुना गया था। इससे भी बड़ी बात ये है कि 21 जून का संबंध किसी किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रख कर चुना गया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत पिछले सात सालों में दूसरी बार इस तरह से सम्मानित हुआ है। पिछली बार ये तब हुआ था जब यूपीए सरकार की पहल पर 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर घोषित किया था। योग दिवस के रूप मे मिलने वाला यह सम्मान भारत की उस सांस्कृतिक विरासत की उन्नतशीलता का भी सम्मान है जिसके लिये हम अक्सर चिंतित हो जाया करते हैं कि कहीं वो पाश्चात्य सभ्यता मे नष्ट तो नहीं हो जाएगी। अब भारत के युवा वर्ग और आम जनमानस मे ऐसा विश्वास हो चला है कि जिस समृद्ध परंपरा को हम किताबों मे पढ़ते आये हैं उस पर सम्पूर्ण विश्व मुहर लगा रहा है। और ये क्षण शायद सबसे ज़्यादा गौरव का क्षण होता है। अब वो गौरवशाली समय तो आने वाला है जब भारतीयों की कही गयी बातें और सम्मेलन सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करने वाले हैं। तब ऐसे मे हमारा भी ये फर्ज़ होगा कि हम अपने अपने पक्ष की जिम्मेदारियों को निभाते चले जाएँ।  विश्वगुरु बनने के बाद हमारी जिम्मेदारियाँ और भी बढ़ जायेंगी। वसीम बरेलवी के अगले शेर से अपनी बात का खत्म (हालांकि अभी यह शुरूआत है) करता हूँ।
कोई रिश्ता बना कर मुतमइन होना नहीं अच्छा,
मुहब्बत आख़री दम तक तअल्लुक़ आज़माती है।

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