नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU), लखनऊ के चिकित्सा विशेषज्ञों के मुुताबिक अधिक से अधिक बच्चे टाइप 2 मधुमेह का शिकार हो रहे हैं। वहां के डॉ. कौसर उस्मान ने कहा कि अब तो कई कारणों से बिना पारिवारिक इतिहास वाले परिवार के बच्चे भी इससे पीड़ित हो रहे है। हाल ही कक्षा 7 के छात्र का मधुमेह का इलाज हुआ है। उनके मुताबिक इसके लिए आनुवांशिकी से ज्यादा बदलती जीवनशैली भी जिम्मेदार है। बच्चों का घर से बाहर खाना, पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव आदि भी है।
17 करोड़ में एक इंजेक्शन भी समाधान नहीं
17 करोड़ में एक इंजेक्शन आती है, वह भी विदेश से और इसे स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) बीमारी से पीड़ित बच्चों को 2 साल की उम्र पूरी करने से पहले दिया जाता है। इसका नाम है जोलगेंस्मा। इसे भारत में अब तक 90 बच्चों को दिया जा चुका है। हालांकि यह सिर्फ राहत देता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि वेर्स्टन देशों में इसकी वजह बनने वाले जीन 50 में से एक में हैं, लेकिन भारत में यह 38 में से एक में यह मिले हैं। दुनिया भर में हर 10 हजार में एक बच्चा SMA के साथ जन्म ले रहा है।
ट्रांसप्लांट कोटिंग विकसित
IIT मंडी के अनुसंधानकर्ताओं ने शर्करा-लेपित नैनोशीट का उपयोग कर ट्रांसप्लांट से जुड़े संक्रमण को रोकने के लिए जीवाणु रोधी स्वदेशी समाधान विकसित किया है। लंबे समय से चिकित्सा और पुनर्निर्माण प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है ट्रांसप्लांट। इसे ट्रांसप्लांट कोटिंग कहा जाता है। इस अनुसंधान की रिपोर्ट जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री में प्रकाशित हुई है।