नई दिल्ली
10 साल का एक गरीब अपोलो अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में तड़पता रहा, लेकिन डॉक्टरों ने एक न सुनी। मरीज को कभी ओपीडी में भेजा गया तो कभी इमरजेंसी में। ओपीडी के डॉक्टर इसे इमरजेंसी का केश बता रहे थे तो इमरजेंसी वाले ओपीडी का। इस लुका-छुपी के खेल में 4 घंटे तक मरीज को कोई डॉक्टर अटेंड तक नहीं किया।
इस बावत स्वस्थ भारत अभियान को सूचना मिलने के बाद, हमारे प्रतिनिधि ने अस्पताल प्रशासन से बात की। जन सूचना अधिकारी अंगद भल्ला ने मरीज का ईलाज करवाने का आश्वासन दिया। अंगद भल्ला ने फोन पर बताया कि मरीज की स्थिति इमरजेंसी की नहीं है अतः उसका ईलाज कोई न्यूरो सर्जन कर रहे हैं। 6 घंटे तक लगातार दबाव बनाए जाने के बाद 10 वर्षीय फुजैल को अपोलो अस्पताल आईसीयू में भर्ती करने के लिए राजी हुआ है। समचार लिखे जाने तक अस्पताल प्रशासन ने मरीज को भर्ती नहीं किया था।
फुजैल के पिता मो. जाकिर बहुत ही गरीब हैं. उनकी ऐसी स्थिति नहीं है कि वो अपने बेटे का ईलाज करा पाएं। अतः उनके पड़ोस में रहने वाला मो. प्रवेज बच्चे का ईलाज बीपीएल कोटे करवाने के लिए अपोलो लेकर आया। प्रवेज ने एसबीए से बात करते हुए कहा कि वे लोग पिछले 6 घंटे से इसके ईलाज के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन यहां पर हमारी कोई नहीं सुन रहा था। प्रवेज ने यह भी बताया कि यहां कि बीपीएल श्रेणी में जो बेड हैं उसे भी अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत से दूसरे अमीर लोगों को दे दिया जाता हैं! इस बावत एसबीए ने जब जन-स्वास्थ्य अधिकारी अंगद भल्ला से जानकारी मांगी तो उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया।
तो अब आईसीयू में…
एक गरीब मरीज के साथ बड़े अस्पतालों में क्या हो रहा है इसका जिता-जागता उदाहरण है यह मामला। जिस मरीज को ओपीडी में भी ठीक से नहीं देखा जा रहा था, उसे अगर आईसीयू में भर्ती करने की नौबत आ गयी तो इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? 10 वर्षीय गरीब फुजैल या उसका गरीब पिता! या वे लोग जो एरकंडिशन में बैठकर देश की स्वास्थ्य-नीति बना रहे हैं!
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