डॉ. शशांक द्विवेदी
डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी
यह बात सर्वविदित है कि मोटापा हमारी सेहत के लिए बहुत खतरनाक है। मोटापा हमको किसी भी उम्र में अपनी चपेट में ले सकता है। लेकिन अब बड़ो के साथ-साथ मोटापा बड़े पैमाने पर बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। वर्तमान समय में बदल रही जीवलशैली के चलते पिछले कुछ वर्षों में बच्चों में मोटापे की शिकायत बढ़ी है और बच्चों में बढ़ता मोटापा एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है। भारत में 10 से 12 प्रतिशत बच्चे मोटापे के शिकार हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक देश के लगभग आधे बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। हाल में किए गए सर्वे के अनुसार पिछले 50 सालों में भारतीय बच्चों में तेल पदार्थों का सेवन 20 प्रतिशत बढ़ा है। कैंडी, चॉकलेट, पिज्जा, फ्रेंच फ्राइज और स्वीट्स खानेवाले बच्चों में 11 से 20 वर्ष के बच्चों की संख्या लगभग 80 प्रतिशत बताई जा रही है। देश में लगभग 1.44 करोड़ बच्चे अधिक वजन वाले हैं। अधिक वजनी मोटे बच्चों के मामले में चीन के बाद दुनिया में भारत का दूसरा नंबर है।
बचपन का ‘‘मोटापा’’ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चों का वजन उनकी उम्र और कद की तुलना में ज्यादा बढ़ जाता है। बचपन का मोटापा आगे बढ़कर डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल का कारण बन सकता है। ज्यादातर माता-पिता उन्हें छोटे और गोलमोल रूप में देखना पसंद करते हैं। माता-पिता के हिसाब से गोलमोल बच्चे क्यूट होते हैं, लेकिन क्यूट बच्चा होना अलग बात है और ‘मोटा बच्चा होना दूसरी बात है। इस अंतर को समझना होगा।
विशेषज्ञों के अनुसार जंक फूड एवं पैक्ड फूड में नमक, फैट एवं कोलेस्ट्रॉल अधिक होता है। उम्र के हिसाब से अधिक मात्रा में कैलोरी शरीर में पहुंचती है, जो धमनियों में जमने लगती है। इसकी वजह से हार्ट और ब्रेन का रक्त संचार प्रभावित होता है। इससे हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। मोटापे से ग्रस्त बच्चों और किशोरों में स्लीप एप्निया जैसे रोग और सामाजिक व मनोवैज्ञानिक समस्याएं अधिक हो सकती हैं, जिससे उन्हें आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ सकता है। वहीं हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, कब्ज का खतरा बना रहता है।
विश्व स्तर पर लगभग दो अरब बच्चे और वयस्क मोटापे से पीड़ित पाए गए हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि आजकल बच्चों में मोटापे की वृद्धि दर वयस्कों की तुलना में बहुत अधिक है। बॉडी मास इंडेक्स या बीएमआई को मापकर बचपन में मोटापे की पहचान की जा सकती है। 85 प्रतिशत से 95 प्रतिशत तक बीएमआई वाले बच्चे मोटापे से ग्रस्त माने जाते हैं। ओवरवेट और मोटापे से ग्रस्त बच्चे अपेक्षाकृत कम उम्र में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) जैसे डायबिटीज और हार्ट डिसीज की चपेट में आ सकते हैं।
आज के सामय में अगर माता-पिता दोनों ही कामकाजी हों तो जाहिर है कि उनके पास बच्चे के लिए समय थोड़ा कम ही रहेगा, ऐसे में स्नैक्स तैयार करना हो या हल्के भूख का इंतजाम करना हो, अधिकांश लोग झटपट तैयार होने वाला भोजन ही चुनते हैं। ये जानते हुए भी कि 2 मिनट में तैयार होने वाली सामग्री सेहतमंद नहीं है, हम बच्चों के जिद्द के आगे झुक ही जाते हैं। चूंकि स्कूल एवं ऐक्स्ट्रा एक्टिविटी क्लासेज के कारण अब बच्चों के पास भी वक्त नहीं होता कि वो उछल-कूद कर सकें। स्मार्ट टीवी, मोबाइल एवं विडियो गेम के जमाने में आउटडोर गेम्स में बच्चे की भागीदारी भी कम हो रही है। यही कारण है कि अब बच्चों में शिथिलता बढ़ती जा रही है जिसके कारण छोटी उम्र के बच्चों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
बच्चों के मोटापे पर एम्स की स्टडी
पिछले दिनों नयी दिल्ली स्थित एम्स की ओर से की गयी एक स्टडी पर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये हैं। दिल्ली के 10,000 स्कूली बच्चों पर की गयी इस रिसर्च में 3 से 4 प्रतिशत बच्चे हाइपरटेंशन से पीड़ित पाये गये, जो हार्ट अटैक का एक बड़ा कारण बनता है। ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि इन पीड़ित बच्चों की उम्र मात्र पांच साल बतायी गयी है। एम्स की यह रिसर्च निम्न व मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों पर की गयी। इसके मद्देनजर उच्च वर्गीय परिवार के बच्चों की स्थिति तो और भी चिंताजनक हो सकती है, जो बदलती जीवनशैली के तहत अपना ज्यादा समय मोबाइल गेम्स पर बिताते हैं। किसी भी पीड़ित बच्चे के शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अगर बचपन से ही ज्यादा है, तो बहुत कम उम्र में ही उसे हाइ ब्लड प्रेशर या दिल की अन्य बीमारियों सहित हार्ट अटैक का खतरा घेर लेता है।
बच्चों में मोटापे के दुष्प्रभाव
मोटापा एक ऐसी समस्या है, जिसे कई गंभीर बीमारियों की जड़ माना जाता है। बच्चों में मोटापा बढ़ने से ना सिर्फ उनका शारीरिक विकास बल्कि मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। इसके अलावा उन्हें कई और गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
मोटापे से नुकसान-हार्मोन में असंतुलन हो सकता है। इससे बच्चों में यौवनावस्था समय से पूर्व प्रारंभ हो सकती है।
-उनके आंतरिक अंगों का विकास प्रभावित होता है।
-अस्थमा और श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।
-असामान्य ब्रीदिंग से अनिद्रा की समस्या हो जाती है।
-भार बढ़ने से कंकाल तंत्र पर दबाव पड़ता है, जिससे बच्चों की हड्डियों का विकास प्रभावित होता है।
-मोटापे के कारण बच्चों को भावनात्मक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।
-मोटापे के कारण बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती है। उम्र बढ़ने के साथ उनके हृदय रोगों और स्ट्रोक की चपेट में आने की आशंका भी कई गुना बढ़ जाती है।
-हार्ट अटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है।
-आधुनिक शोधों में यह बात सामने आई है कि शरीर में चर्बी बढ़ने से दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। इससे दिमाग की कार्यशैली को भी नुकसान पहुंचता है और याददाश्त भी कमजोर होती है।
-आत्मविश्वास की कमी और अवसाद (डिप्रेशन) की समस्या बढ़ सकती है।
बच्चों में बढ़ते मोटापे को ब्रिटेन ने माना बड़ा संकट
ब्रिटेन में पिछले एक दशक से माता-पिता को बच्चों में मोटापा कैसे कम किया जाए, इसकी क्लासेस दी जा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका असर दिख रहा है और बच्चों में मोटापे के मामले में कमी आई है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी इसकी पुष्टि की है। उनका कहना है कि इन क्लासेस का सबसे ज्यादा असर ब्रिटेन के लीड्स शहर में देखा गया है। यहां बच्चों की लाइफस्टाइल पर माता-पिता का नियंत्रण रखने की कोशिश कर रहें है। 8 हफ्तों तक चलनें वाली इन पेरेंटिंग क्लासेस का लक्ष्य माता-पिता को बच्चों को खाने-पीने के लिए नियंत्रण की सीख देना और परिवार को सेहतमंद बनाने लिए प्रेरित करना था। बच्चे क्या खाना चाहते हैं उनसे यह पूछने की बजाय उनको सिर्फ सेहतमंद खाने के विकल्प सुझाए जाते हैं। क्लासेस में माता-पिता को बच्चों पर खाने के मामले में सख्ती बरतने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।
लीड्स से हुई थी शुरुआत
ब्रिटेन के लीड्स शहर में सबसे पहले इस तरह की क्लासेज शुरू की गई थीं। विशेषज्ञों के अनुसार यहां पिछले कुछ सालों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मोटापे की दर में कमी आई है। 2014 में यह दर 9.4 फीसद थी और अगले तीन सालों में यह गिरकर 8.8 हो गई। ग्लासगो में भी यह दर 6.8 से घटकर 6 फीसद हो गई है। बच्चों में बढ़ते मोटापे पर रिसर्च कर रहीं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता प्रो. सुसान जेब के मुताबिक, लीड्स में काफी सुधार देखा जा रहा है, माता-पिता के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। यहां बच्चे माता-पिता से चीजों को खरीदने की जिद नहीं कर रहे। वे सिर्फ वही खा रहे हैं जो माता-पिता तय करते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, लंदन में पांच साल के बच्चों में मोटापे की दर 9.4 फीसद है। यह आंकड़ा बेहद अहम है, क्योंकि मोटापे के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। प्राइमरी स्कूल के ज्यादातर बच्चों का वजन औसत से अधिक है। अब इस तरह की क्लासेज दूसरे शहरों में भी शुरू करने की तैयारी है।
8 हफ्तों की क्लासेस में प्रशिक्षण
पहला हफ्ता: माता-पिता लक्ष्य पर फोकस कैसे करें। दूसरा हफ्ता: जीवन और बच्चों के बीच सामंजस्य कैसे बिठाएं। तीसरा हफ्ता: बच्चों की मांग नहीं, उनकी जरूरतों को कैसे पूरा करें। चौथा हफ्ता: खाने के समय तनाव को कैसे कम करें। पांचवा हफ्ता: कैसे नए विचारों को लागू करें। छठा हफ्ता: कितना खाना दिया जाए और इसे कैसे हेल्दी स्नैक में बदला जाए। सातवां हफ्ता: बच्चों के व्यवहार को कैसे हैंडल करें। आठवां हफ्ता: भविष्य की प्लानिंग कैसे करें।
मोटापा की महामारी
वर्तमान समय में बच्चों की शारीरिक सक्रियता लगभग खत्म या बहुत कम होने की वजह से मोटापा एक महामारी की तरह फैल रहा है। फ्लैट कल्चर के पनपने से बच्चों खेलने के लिए खुले स्थान ही नहीं बचे हैं। टीवी, वीडियो गेम, मोबाइल, कंप्यूटर के प्रचलन और पढ़ाई के बढ़ते बोझ ने बच्चों को चारदीवारी में कैद कर दिया है। जीवनशैली बदलने से खान-पान का तौर-तरीका भी बदल गया है, बच्चे क्वालिटी फूड की बजाय फास्ट फूड के रूप में अत्यधिक कैलोरी खा रहे हैं लेकिन उसे ठीक तरह से पचा नहीं पाते और इसका सीधा संबंध वजन बढ़ने से होता है। ज्यादा वसा युक्त खाने से बचपन से ही कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ने लगता है। नमक का सेवन बढ़ने से छोटी उम्र में ही उच्च रक्तचाप की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है।
बचाव के तरीके
-बच्चों को फास्ट फूड और फैटी फूड्स की बजाय घर का बना खाना खिलाएं।
-अंकुरित अनाज खिलाएं, शरीर इनको आसानी से ग्रहण कर लेता है।
-बच्चों के भोजन में फलों और सब्जियों को शामिल करें। उनके भोजन में एक तिहाई फल-सब्जियां और दो तिहाई अनाज होना चाहिए।
-उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाएं। ताड़ासन, पदमासन और भुजंग आसन जैसे सामान्य योगासन करने की आदत डालें।
-सॉफ्ट ड्रिंक की बजाय ताजे फलों का जूस या साबुत फल दें।
-बच्चों को ज्यादा टीवी न देखनें दें। खुली जगह में खेलने दें।
-निश्चित समय पर और उचित मात्रा में खिलाएं।
-बच्चों को ऐसा भोजन खिलाएं, जिसमें प्रोटीन और फाइबर की मात्रा अधिक और शुगर की मात्रा कम होनी चाहिए।
-बच्चों को हमेशा छोटी प्लेट में खाना दें, इससे उसकी मात्रा अधिक लगेगी और वे कम खाएंगे।
-उन्हें टीवी के सामने बैठकर न खाने दें, धीरे-धीरे चबाकर खाने की आदत डालें।
-बच्चे देखकर सीखते हैं इसलिए सबसे जरूरी है, अपनी खान-पान की आदतें सुधारें।
-बच्चों को देर रात तक टीवी न देखने दें उनका सोने और उठने का एक समय निर्धारित कर दें। कम सोने से हार्मोन और मेटाबॉलिज्म में परिवर्तन हो जाता है, इससे भी भार बढ़ता है।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण हुआ गंभीर
पिछले दिनों बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने स्कूल हेल्थकेयर पर हुए एसोचौम के सम्मेलन में जंक फूड के विज्ञापनों पर रोक लगाने के प्रस्ताव पर विचार किया है। जंक फूड और सॉफ्ट ड्रिंक का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों में मोटापे के अलावा भी कई गंभीर बीमारियों की वजह बन रहा है। खानपान के इस फास्ट फूड कल्चर ने ही छोटे-छोटे बच्चों में डायबिटीज और दिल से जुड़ी गंभीर बीमारियों को बढ़ाया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यदि खानपान की आदतें ऐसी ही बनी रही तो 2030 तक हर तीन में से एक बच्चा मोटापे का शिकार होगा।
बच्चों के पूरक पोषण को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 को पारित किया गया था। जिसके अनुसार बच्चों के खान-पान पर ध्यान देना अनिवार्य है, बदलते हुए कल्चर के कारण जंक फूड जैसे पिज्जा बर्गर, चिप्स, मीठा कार्बोनेटेड और गैर-कार्बोनेटेड पेय, रेडी-टू-ईट नूडल्स बाजार से लेकर स्कूल के आसपास के क्षेत्र में भी फैलता जा रहा है। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के अनुसार स्कूल के 50 मीटर के दायरे में गैर स्वास्थकारी खाद्य पदार्थो के विज्ञापनों और प्रचार पर रोक लगायी जाएगी। इस मसौदे को लाने के दौरान, एफएसएसएआई ने कहा था कि उसका उद्देश्य चिप्स, मीठा कार्बोनेटेड और गैर-कार्बोनेटेड पेय, रेडी-टू-ईट नूडल्स, पिज्जा, बर्गर जैसे अधिकांश आम जंक फूड की खपत और उपलब्धता को सीमित करना है। लेकिन बच्चों को स्वस्थ आहार लेने की प्रेरणा के लिए समाज के स्तर पर भी जागरूकता की बड़ी जरुरत है ।
मोटापे के कारण
मोटापे के लिए अनुवांशिक, बायोलॉजिकल, लाइफस्टाइल आदि कई कारण जिम्मेदार हैं। आमतौर पर मोटापा उन बच्चों को होता है, जो शरीर की जरूरत से ज्यादा कैलोरी खाते हैं। इसके अलावा ये कारण भी जिम्मेदार होते हैं।
पारिवारिक कारणः जिन बच्चों के माता-पिता मोटे होते हैं, उनके मोटे होने की संभावना ज्यादा होती है। इसके पीछे जेनेटिक कारण के अलावा माता-पिता के खान-पान और एक्सरसाइज की आदत भी होती है।
क्रियाशीलता की कमीः आजकल ज्यादातर बच्चे अपना ज्यादा समय टीवी देखते हुए गुजारते हैं। इस वजह से उनमें फिजिकल मूवमेंट कम होता है। साथ ही टीवी देखने वाले बच्चे टीवी देखते समय कुछ न कुछ खाते रहते हैं, जिस वजह से उनका वजन बढ़ता ही जाता है।
अनुवांशिक कारणः कुछ बच्चे ज्यादा खाते भी नहीं, न ही घंटों टीवी के सामने गुजारते हैं, फिर भी उनका वजन लगातार बढ़ता ही जाता है। हाल में हुए रिसर्च से पता चला है कि इसके पीछे अनुवांशिक कारण भी होता है। माँ के मोटापे से ग्रस्त होनें पर इसका असर होने वाले बच्चे पर भी पड़ता है, जन्म के बाद ऐसे बच्चें मोटे और कम एक्टिव हो सकतें हैं।
जंक फूड की अधिकताः खाने-पीने में पोषक आहार की जगह जंक फूड ने ले ली है। यानी स्वाद तो बढ़ा है, लेकिन पोषण गायब हो गया है। नतीजतन सेहत बिगड़ रही है और वजन बढ़ रहा है।
चिकित्सीय कारणः एन्डोक्राइन या न्यूरोलॉजिकल बीमारी जैसी स्थितियां भी मोटापे का कारण बनती हैं। कुछ दवाइयों से भी मोटापा बढ़ता है।
अत्यधिक तनावः माता-पिता में तलाक, झगड़े, परिवार में किसी प्रिय की मौत या दूसरी पारिवारिक स्थितियां भी इसके लिए जिम्मेदार होती हैं।