नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। कोरोना काल के भयावह और जानलेवा दौर के बाद अब कई सवाल उठने लगे हैं। दूसरी लहर के दौरान मीडिया में लगातार गंगा में शवों के बहने या तट पर दफना देने जैसी खबरें चलती रही। कोरोना प्रोटोकॉल के अनुसार यह अनुचित था। अब राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने इसे गंभीर मानते हुए बिहार और यूपी की सरकारों से इसका ब्योरा मांगा है।
बिहार, यूपी सरकार को नोटिस
खबरों के मुताबिक एक पत्रकार पत्रकार संजय शर्मा ने इस बारे में याचिका दाखिल कर ट्रिब्यूनल से यह पूछा था कि इस पर क्या कोई आपराधिक मामला दर्ज किया गया या शवों के प्रबंधन के लिए किसी के खिलाफ प्रोटाकॉल के खिलाफ कोई मुकदमा चलाया गया? इस पर जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की बेंच ने यूपी और बिहार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) और अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) से इस विषय पर फैक्चुअल वेरिफिकेशन रिपोर्ट जमा करने को कहा है। एनजीटी ने दोनों राज्य सरकारों को कोविड-19 महामारी शुरू होने से पहले से लेकर इस साल 31 मार्च तक गंगा नदी में तैरते दिखे मानव शवों और नदी किनारे दफनाई गई लाशों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी है।
कुछ और सवाल भी उठाये
मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक NGT ने यह भी पूछा कि क्या ऐसा करने से पर्यावरण नियमों का कोई उल्लंघन हुआ है और यदि हां, तो किए गए एहतियाती उपायों का विवरण दें। इसके अलावा शवों को प्रवाहित करने या तट पर शवों को दफनाने से रोकने के लिए जन जागरूकता लाने के लिए क्या कदम उठाए गए?