इतिहास से शिक्षा लेते हुए कोराना के बाद के जीवन-संदर्भों को रेखांकित कर रही हैं अंतरराष्ट्रीय लाइफ कोच डॉ. अभिलाषा द्विवेदी
एसबीएम विशेष
जब हम इस कोरोना संक्रमण के संकट से उबर जाएंगे जो कि हम निश्चित ही उबरेंगे, उसके बाद हमारे सामने एक सवाल होगा। या तो हम अपनी दुनिया में लौट जाएं जो पहले जैसी थी या फिर हम उन मुद्दों से निर्णायक तरीके से निपटें जो हमें संकटों के प्रति अनावश्यक रूप से कमजोर बनाते हैं। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, इस महामारी के कारण 50 लाख से लेकर ढाई करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी और अमेरिका को श्रमिक आय के रूप में 960 अरब से लेकर 3.4 खबर डॉलर का नुकसान होगा। व्यापार और विकास पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में ये बात सामने आई है कि कोरोना वायरस महामारी से वैश्विक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर 30. 40 फीसदी का नकारात्मक दबाव पड़ेगा और विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार अंतरराष्ट्रीय आगमन में 20.30 फीसदी की गिरावट आ जाएगी।
विश्व में महामारी की पुनरावृति सदी में कम से कम एक बार तो दर्ज की ही गई है। इतिहास के आईने में हम इसके प्रभाव को देखकर आंकलन करें पाते हैं कि हर त्रासदी और महामारी के बाद पुरानी व्यवस्था और मान्यताएं टूटती हैं। कुछ नई चीज़ें सामने आती हैं। अक्सर पूरी की पूरी व्यवस्था ही परिवर्तित हो जाती है। ऐसी ही महामारी का प्रभाव था कि साम्राज्यवाद का विस्तार भी हुआ और दोबारा आई बीमारी की त्रासदी के बाद इसी साम्राज्यवाद का अस्त भी शुरू हुआ। ऐसी घटनाओं का हमें लगभग 2 हजार वर्ष पुराने सन्दर्भ भी मिलते हैं। आज की वर्तमान परिस्थितियों में अपनी दिशा तय करने के लिए हम उन पुरानी घटनाओं के अनुभव को ज़रूर दिमाग़ में रखना चाहिए।
430 BC से 426 BC तक एथेंस में अपना प्रकोप फैलाने वाले एथेनियन प्लेग और 541-542 ईस्वी सन् के दौरान पूर्वी रोम में फैले जस्टिनियन प्लेग के बाद पूरे यूरोप में ईसाई रिलीजन का प्रसार हुआ था। वहीं तेरहवीं शताब्दी के मध्य, यूरोप में पसरी ब्लैक डेथ महामारी के बाद लोगों ने रिलीजन को कम महत्व देना शुरू कर दिया था। इस महामारी ने दुनिया के प्रति लोगों के विचारों में मानवता का दृष्टिकोण पैदा किया। यही वो शुरुआती बदलाव थे जिस कारण यूरोप में पुनर्जागरण सम्भव हुआ। इतिहास के पन्नों में ऐसी तमाम महामारी के संकट की घटनाएं हैं जिसने जीवन के प्रति लोगों का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल कर रख दिया। सिर्फ़ इतना ही नहीं इसके कारण जीवन में तब तक अति आवश्यक समझी जाने वाली व्यवस्थाओं के साथ-साथ पावर सेंटर भी शिफ़्ट हो गए।
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1918-1920 के दौरान पूरी दुनिया स्पैनिश फ्लू के संक्रमण का शिकार बनी। इस वैश्विक महामारी ने पावर शिफ़्ट में बड़ी भूमिका निभाई। भारत सहित अन्य देशों में बड़े स्तर पर मज़दूर आंदोलन शुरू हुए और साम्राज्यवाद के विरुद्ध लोगों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया। भारत में इसी महामारी से लाखों लोग मारे गए थे। इसके बाद ही भारत में भी आज़ादी के लिए जनता उद्वेलित हो उठी और आंदोलनों के बिगुल फूँके जाने लगे।
1918 महामारी के कारण आर्थिक स्थिति के आधार पर मृत्यु दर में आए बदलावों के प्रभाव के एक अध्ययन के अनुसार, एक बड़े महामारी के प्रकोप ने प्रभावित शहरों के लिए आर्थिक आपदा को भी जन्म दिया।
इस लॉकडाउन के पहले हम भौतिक चीज़ों के स्वरुप और उपयोग को समझने वाले विज्ञान पर केन्द्रित थे। यह भौतिक विकास हमें एक ऐसी दिशा में ले जा रहा है जहां कहने को सुविधाएं तो बढ़ रही हैं पर व्यक्ति का तार्किक, आध्यात्मिक और नैतिक विकास की दिशा में बाधाएँ बढ़ रही थीं। जिसे हम भारतीय जनता महसूस तो कर रहे थे पर इसका तोड़ नहीं निकाल पा रहे थे।
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इस समय, बीमारी के कारण हम इस आपाधापी वाली आधुनिक जीवन शैली की रेस में रुकने को मजबूर हुए हैं। इसके संकट काल के बाद अब दोबारा जीवन को दिशा और गति देनी है। ऐसे में हम अपनी पुरानी व्यवस्थाओं और स्थिरता आने के कारण किए गए चिंतन को मिलाकर संतुलित जीवन का आधार बनाने का प्रयास करें। जिससे जीवन सरल, सुगम और सुखद बने।
ऐसी सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमें आगे की यात्रा तय करनी है। इस स्थिरता से आगे बढ़ना है। जहाँ मानव स्वास्थ्य, सामाजिक जीवन, अर्थव्यवस्था, मनोवैज्ञानिक भावनात्मक संतुलन, शहरी विकास और अपने मूल क्षेत्रीय आधार सब बातों पर विचार करना आवश्यक है। यह रीसेट हमारे लिए एक परीक्षा है।
फ़िलहाल कोरोना वायरस का प्रसार की रोकथाम करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ना हम नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों से जुड़ा हुआ है। यदि हमने सोच समझ कर फ़ैसले नहीं किए तो हम लंबे समय के लिए अपनी सबसे कीमती आज़ादियाँ खो सकते हैं। और हमें यह मानना पड़ेगा कि सारी पाबंदियां, हमारी सारी निगरानी हमारे जीवन और सेहत की रक्षा करने के लिए आवश्यक कदम है। तो निर्णय हमारा है।