नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। कोरोना काल में महामारी से भयभीत लोगों ने ऑक्सीमीटर रखना शुरू कर दिया था ताकि संक्रमण की थोड़ी भी आशंका हो तो इससे पल्सरेट जान सकें और समय रहते डॉक्टर की राय ले सकें। अब पता चला है कि ऑक्सीमीटर ने अक्सर सही नतीजे नहीं दिये। नतीजतन संक्रमण पहचानने और कोरोना के इलाज में देरी हुई।
शोध पत्रिका का दावा
यह दावा अमेरिका का है। वहां की संस्था जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) की एक स्टडी से इसका खुलासा हुआ है। यह भी पता चला कि गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों में ऑक्सीमीटर ऑक्सीजन का लेवल ज्यादा बताता है। रक्त की जांच और ऑक्सीमीटर की जांच में फर्क आ जाता था। फलतः वहां अश्वेतों को परेशानी होती थी। महामारी के पहले साल में अस्पतालों में भीड़ होती थी। इससे बचने के लिए अस्पतालों में ऑक्सीजन लेवल को देखकर ही भर्ती किया जा रहा था।
25 हजार लोगों पर स्टडी
बायलर कॉलेज, जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और HCA हेल्थकेयर ने मिलकर करीब 25 हजार लोगों की रिपोर्ट का अध्ययन किया। ऑक्सीमीटर के अलावा ब्लड टेस्ट से इनके रक्त में ऑक्सीजन का लेवल नोट किया गया था। ब्लड की क्रॉस चेकिंग में पता चला कि अश्वेतों के मामले में ऑक्सीमीटर ने गलत रीडिंग दिखायी। अब अमेरिका में डॉक्टरों को सलाह दी रही है कि वे ऑक्सीमीटर को ही अंतिम सच नहीं समझें। अन्य स्तर पर भी ऑक्सीजन लेवल की जांच करा लें।