स्वस्थ भारत मीडिया
स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ / Talking about health with Gandhi नीचे की कहानी / BOTTOM STORY फ्रंट लाइन लेख / Front Line Article समाचार / News

स्वास्थ्य की बात गांधी के साथः 1942 में महात्मा गांधी ने लिखी थी की ‘आरोग्य की कुंजी’ पुस्तक की प्रस्तावना

‘स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ’ सीरीज के तीसरे आलेख के रूप में हम ‘आरोग्य की कुंजी’ पुस्तक की प्रस्तावना दे रहे हैं। इसमें महात्मा गांधी ने आरोग्य विषय पर लिखे अपने लेखों के ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि की चर्चा की है। इस सीरीज का यह तीसरा लेख है। इसे महात्मा गांधी ने आगा खां महल, यरवडा, पुणे में 27.08.42 को लिखा था। अगर आपके पास महात्मा गांधी के स्वास्थ्य चिंतन से जुड़ी कोई जानकारी है तो हमसे जरूर साझा करें। यदि आप कम से कम 300 शब्दों में अपनी बात भेज सकें तो और अच्छी बात होगी। अपनी बात आप हमें forhealthyindia@gmail.com  पर प्रेषित कर सकते हैं। – संपादक

 
 
 
एम.के.गांधी
‘आरोग्यके विषय में सामान्य ज्ञान’ शीर्षक से ‘इण्डियन ओपीनियन’ के पाठकों के लिए मैंने कुछ प्रकरण 1906 के आस-पास दक्षिण अफ्रिका में लिखे थे। बाद में वे पुस्तक के रूप में प्रकट हुए। हिन्दुस्तान में यह पुस्तक मुश्किल से ही कहीं मिल सकती थी। जब मैं हिन्दुस्तान वापस आया उस वक्त इस पुस्तक की बहुत माँग हुई। यहाँ तक कि स्वामी अखंडानन्दजी ने उसकी नई आवृत्ति निकालने की इज़ाजत माँगी और दूसरे लोगों ने भी उसे छपवाया। इस पुस्तक का अनुवाद हिन्दुस्तानी की अनेक भाषाओं में हुआ और अंग्रेजी अनुवाद भी हुआ। यह अनुवाद पश्चिम में पहुँचा और उसका अनुवाद युरोप की भाषाओं में हुआ। परिणाम यह आया कि पश्चिम में या पूर्व में मेरी और और कोई पुस्तक इतनी लोकप्रिय नहीं हुई, जितनी कि यह पुस्तक हुई। उसका कारण मैं आज तक समझ नहीं सका। मैंने तो ये प्रकरण सहज ही लिख डाले थे। मेरी निगाह में उनकी कोई खास क़दर नहीं थी। इतना अनुमान मैं ज़रूर करता हूँ कि मैंने मनुष्य के आरोग्य को कुछ नये ही स्वरूप में देखा है और इसलिए उसकी रक्षा के साधन भी सामान्य वैद्यों और डॉक्टरों की अपेक्षा कुछ अलग ढंग से बताये हैं। उस पुस्तक की लोकप्रियता यह कारण हो सकता है।
इसे भी पढ़ें…स्वास्थ्य की बात गांधी के साथः महात्मा गांधी के स्वास्थ्य चिंतन ने बचाई लाखों बच्चों की जान
मेरा यह अनुमान ठीक हो या नहीं, मगर उस पुस्तक की नई आवृत्ति निकालने की माँग बहुत से मित्र ने की है। मूल पुस्तक में मैंने जिन विचारों को रखा है उनमें कोई परिवर्तन हुआ है या नहीं, यह जानने की उत्सुकता बहुत से मित्रों ने बताई है। आज तक इस इच्छा की पूर्ति करने का मुझे कभी व़क्त ही नहीं मिला। परन्तु आज ऐसा अवसर आ गया है। उसका फ़ायदा उठा कर मैं यह पुस्तक नये सिरे से लिख रहा हूँ। मूल पुस्तक तो मेरे पास नहीं है। इतने वर्षो के अनुभव का असर मेरे विचारों पर पड़े बिना नहीं रह सकता। मगर जिन्होंने मूल पुस्तक पढ़ी होगी, वे देखेंगे कि मेरे आज के और 1906 के विचारों में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ है।
इसे भी पढ़ेंः स्वच्छता अभियान : गांधी ही क्यों?
इस पुस्तकको नया नाम दिया है। ‘आरोग्य कुंजी’। मैं यह उम्मीद दिला सकता हूँ कि इस पुस्तक को विचार पूर्वक पढ़ने वालों और इसमें दिये हुए नियमों पर अमल करने वालों को आरोग्यकी कुंजी मिल जायगी और उन्हें डॉक्टरों पर अमल करने वालों को आरोग्यकी कुंजी मिल जायगी और उन्हें डॉक्टरों और वैद्यों का दरव़ाजा नहीं खटखटाना पड़ेगा।
 
 
 

Related posts

10 हजार जन औषधि केंद्र खुले, 15 हजार और खुलेंगे

admin

‘मीडिया चौपाल-2022’ में मिलेगा तीन कुलपतियों का सान्निध्य

admin

स्वास्थ्य बजट अलग से क्यों नहीं…

रवि शंकर

Leave a Comment